Chapter 1, Verse 44
Verse textउत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन। नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।।1.44।।
Verse transliteration
utsanna-kula-dharmāṇāṁ manuṣhyāṇāṁ janārdana narake ‘niyataṁ vāso bhavatītyanuśhuśhruma
Verse words
- utsanna—destroyed
- kula-dharmāṇām—whose family traditions
- manuṣhyāṇām—of such human beings
- janārdana—he who looks after the public, Shree Krishna
- narake—in hell
- aniyatam—indefinite
- vāsaḥ—dwell
- bhavati—is
- iti—thus
- anuśhuśhruma—I have heard from the learned
Verse translations
Swami Adidevananda
For those whose clan laws are destroyed, dwelling in hell is ordained, O Krishna; thus, we have heard.
Swami Ramsukhdas
।।1.44।। हे जनार्दन! जिनके कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, उन मनुष्यों का बहुत काल तक नरकों में वापस होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं।
Swami Tejomayananda
।।1.44।।हे जनार्दन ! हमने सुना है कि जिनके यहां कुल धर्म नष्ट हो जाता है, उन मनुष्यों का अनियत काल तक नरक में वास होता है।
Swami Gambirananda
O Janardana, we have heard that living in hell is inevitable for those whose family duties are destroyed.
Swami Sivananda
We have heard, O Janardana, that those men in whose families the religious practices have been destroyed are inevitably destined to dwell in hell for an unknown period.
Dr. S. Sankaranarayan
O Janardana! Dwelling in hell is certain for men whose family duties have fallen into disuse; this we have heard.
Shri Purohit Swami
The wise say, my Lord, that they are forever lost whose ancient traditions have been lost.
Verse commentaries
Swami Ramsukhdas
1.44।। व्याख्या--'उत्सन्नकुलधर्माणाम् ৷৷. अनुशुश्रुम'--(टिप्पणी प0 30) भगवान्ने मनुष्यको विवेक दिया है, नया कर्म करनेका अधिकार दिया है। अतः यह कर्म करनेमें अथवा न करनेमें, अच्छा करनेमें अथवा मन्दा करनेमें स्वतन्त्र है। इसलिये इसको सदा विवेक-विचारपूर्वक कर्तव्य-कर्म करने चाहिये। परन्तु मनुष्य सुखभोग आदिके लोभमें आकर अपने विवेकका निरादर कर देते हैं और राग-द्वेषके वशीभूत हो जाते हैं, जिससे उनके आचरण शास्त्र और कुलमर्यादाके विरुद्ध होने लगते हैं। परिणामस्वरूप इस लोकमें उनकी निन्दा, अपमान, तिरस्कार होता है और परलोकमें दुर्गति, नरकोंकी प्राप्ति होती है। अपने पापोंके कारण उनको बहुत समयतक नरकोंका कष्ट भोगना पड़ता है। ऐसा हम परम्परासे बड़े-बूढ़े गुरुजनोंसे सुनते आये हैं। 'मनुष्याणाम्'--पदमें कुलघाती और उनके कुलके सभी मनुष्योंका समावेश किया गया है अर्थात् कुलघातियोंके पहले जो हो चुके हैं--उन (पितरों) का, अपना और आगे होनेवाले-(वंश-) का समावेश किया गया है।
Swami Chinmayananda
।।1.44।। इसके उपरान्त भी भगवान् कुछ नहीं बोले। अब अर्जुन की स्थिति ऐसी हो गयी थी कि वह न तो चुप रह सकता था और न उसको नये तर्क ही सूझ रहे थे। परन्तु भगवान् के मौन का प्रभाव भी अनूठा ही था। इस श्लोक में अर्जुन पारम्परिक कथन ही उद्धृत करता है।हिन्दुओं के लिये धर्म ही संस्कृति है। इसलिये कुलधर्म के महत्व पर पर्याप्त प्रकाश डाला जा चुका है। इसी कारण अर्जुन यहाँ एक बार फिर कुलधर्म नाश के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित करता है।
Sri Anandgiri
।।1.44।।राज्यप्राप्तिप्रयुक्तसुखोपभोगलब्धतया स्वजनहिंसायां प्रवृत्तिरस्माकं गुणदोषविभागविज्ञानवतामतिकष्टेति परिभ्रष्टहृदयः सन्नाह अहो बतेति।
Sri Dhanpati
।।1.44।।ततो यद्भवति तदाह उत्सन्नेति। उत्सन्ना विनष्टाः कुलधर्मा जातिधर्माश्च येषां तेषां मनुष्याणां नरके नियतं नियमेन वासो भवतीत्यनुशुश्रुम शास्त्रादाचार्याच्च श्रुतवन्तः कुलक्षयहेतुभूतयुद्धकर्तृ़णामस्माकं नरकपतनध्रौव्यात्तस्मान्निवृत्तिरेव श्रेयसीति नरकान्त्राणार्थिभिर्जनैः प्रार्थ्यमानं त्वामहमपि तन्त्राणाय प्रार्थायामीति ध्वनयन्नाह हे जनार्दनेति।
Sri Neelkanth
।। 1.44एतदेव विवृणोति द्वाभ्याम् दोषैरिति।
Sri Ramanujacharya
।।1.44।।अर्जुन उवाच संजय उवाच स तु पार्थो महामनाः परमकारुणिको दीर्घबन्धुः परमधार्मिकः सभ्रातृको भवद्भिः अतिघोरैः मारणैः जतुगृहादिभिः असकृद् वञ्चितः अपि परमपुरुषसहायः अपि हनिष्यमाणान् भवदीयान् विलोक्य बन्धुस्नेहेन परमया च कृपया धर्माधर्मभयेन च अतिमात्रस्विन्नसर्वगात्रः सर्वथा अहं न योत्स्यामि इति उक्त्वा बन्धुविश्लेषजनितशोकसंविग्नमानसः सशरं चापं विसृज्य रथोपस्थे उपाविशत्।
Sri Sridhara Swami
।। 1.44।।No commentary.
Sri Vedantadeshikacharya Venkatanatha
।। 1.44।।No commentary.
Sri Abhinavgupta
।।1.35 1.44।।निहत्येत्यादि। आततायिनां हनने पापमेव कर्तृ। अतोऽयमर्थः पापेन तावदेतेऽस्मच्छत्रवो हताः परतन्त्रीकृताः। तांश्च निहत्यास्मानपि पापमाश्रयेत् (S omits पापम्)। पापमत्र लोभादिवशात् (S लोभवशात्) कुलक्षयादिदोषादर्शनम् (S दोषदर्शनम्)। अत एव कुलादिधर्माणामुपक्षेपं (K कुलक्षयादि N क्षेपकम्) करोति स्वजनं हि कथमित्यादिना।
Sri Madhusudan Saraswati
।।1.44।।बन्धुवधपर्यवसायी युद्धाध्यवसायोऽपि सर्वथा पापिष्ठतरः किं पुनर्युद्धमिति वक्तुं तदध्यवसायेनात्मानं शोचन्नाह यदीदृशी ते बुद्धिः कुतस्तर्हि युद्धभिनिवेशेनागतोऽसीति न वक्तव्यम्। अविमृश्यकारितया मयौद्धत्यस्य कृतत्वादिति भावः।
Sri Purushottamji
।।1.44।।एवं सर्वधर्मलोपात्सर्वेषां नरकलोको भवतीत्याह उत्सन्नकुलधर्माणामिति। हे जनार्दन उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां नियतं नरके वासो भवतीति वयमनुशुश्रुम श्रुतवन्त इत्यर्थः। जनार्दनेति सम्बोधनेन त्वत्सम्बन्धरहितास्तथा भवन्ति अविद्यासम्बन्धादिति ज्ञापितम्।
Swami Sivananda
1.44 उत्सन्नकुलधर्माणाम् whose family religious practices are destroyed? मनुष्याणाम् of the men? जनार्दन O Janardana? नरके in hell? अनियतं for unknown period? वासः dwelling? भवति is? इति thus? अनुशुश्रुम we have heard.No Commentary.