1. अर्जुनविषादयोग | 2. सांख्ययोग | 3. कर्मयोग | 4. ज्ञानकर्मसंन्यासयोग | 5. कर्मसंन्यासयोग | 6. ध्यानयोग | 7. ज्ञानविज्ञानयोग | 8. अक्षरब्रह्मयोग | 9. राजविद्याराजगुह्ययोग | 10. विभूतियोग | 11. विश्वरूपदर्शनयोग | 12. भक्तियोग | 13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग | 14. गुणत्रयविभागयोग | 15. पुरुषोत्तमयोग | 16. दैवासुरसम्पद्विभागयोग | 17. श्रद्धात्रयविभागयोग | 18. मोक्षसंन्यासयोग |

11. विश्वरूपदर्शनयोग (Vishwaroopa Darshana Yoga)

Chapter 11, Verse 1 | Chapter 11, Verse 2 | Chapter 11, Verse 3 | Chapter 11, Verse 4 | Chapter 11, Verse 5 | Chapter 11, Verse 6 | Chapter 11, Verse 7 | Chapter 11, Verse 8 | Chapter 11, Verse 9 | Chapter 11, Verse 10 | Chapter 11, Verse 11 | Chapter 11, Verse 12 | Chapter 11, Verse 13 | Chapter 11, Verse 14 | Chapter 11, Verse 15 | Chapter 11, Verse 16 | Chapter 11, Verse 17 | Chapter 11, Verse 18 | Chapter 11, Verse 19 | Chapter 11, Verse 20 | Chapter 11, Verse 21 | Chapter 11, Verse 22 | Chapter 11, Verse 23 | Chapter 11, Verse 24 | Chapter 11, Verse 25 | Chapter 11, Verse 26 | Chapter 11, Verse 27 | Chapter 11, Verse 28 | Chapter 11, Verse 29 | Chapter 11, Verse 30 | Chapter 11, Verse 31 | Chapter 11, Verse 32 | Chapter 11, Verse 33 | Chapter 11, Verse 34 | Chapter 11, Verse 35 | Chapter 11, Verse 36 | Chapter 11, Verse 37 | Chapter 11, Verse 38 | Chapter 11, Verse 39 | Chapter 11, Verse 40 | Chapter 11, Verse 41 | Chapter 11, Verse 42 | Chapter 11, Verse 43 | Chapter 11, Verse 44 | Chapter 11, Verse 45 | Chapter 11, Verse 46 | Chapter 11, Verse 47 | Chapter 11, Verse 48 | Chapter 11, Verse 49 | Chapter 11, Verse 50 | Chapter 11, Verse 51 | Chapter 11, Verse 52 | Chapter 11, Verse 53 | Chapter 11, Verse 54 | Chapter 11, Verse 55 |

Chapter 11 - विश्वरूपदर्शनयोग

भगवद गीता का ग्यारहवा अध्याय विश्वरूपदर्शनयोग है। इस अध्याय में, अर्जुन कृष्ण को अपने विश्व रूप को प्रकट करने का अनुरोध करते हैं जो की सारे विश्वों अथवा संपूर्ण अस्तित्व का स्त्रोत है। भगवान कृष्ण के शरीर में पूरी सृष्टि को देखने में सक्षम होने के लिए अर्जुन को दिव्य दृष्टि दी जाती है।

The eleventh chapter of the Bhagavad Gita is "Vishwaroopa Darshana Yoga". In this chapter, Arjuna requests Krishna to reveal His Universal Cosmic Form that encompasses all the universes, the entire existence. Arjuna is granted divine vision to be able to see the entirety of creation in the body of the Supreme Lord Krishna.


11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 1

Verse text

अर्जुन उवाच मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम्। यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम।।11.1।।

Continue reading Chapter 11, Verse 1

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 2

Verse text

भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया। त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्।।11.2।।

Continue reading Chapter 11, Verse 2

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 3

Verse text

एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर। द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम।।11.3।।

Continue reading Chapter 11, Verse 3

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 4

Verse text

मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो। योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्।।11.4।।

Continue reading Chapter 11, Verse 4

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 5

Verse text

श्री भगवानुवाच पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः। नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।11.5।।

Continue reading Chapter 11, Verse 5

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 6

Verse text

पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्िवनौ मरुतस्तथा। बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याऽश्चर्याणि भारत।।11.6।।

Continue reading Chapter 11, Verse 6

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 7

Verse text

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्। मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।11.7।।

Continue reading Chapter 11, Verse 7

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 8

Verse text

न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा। दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्।।11.8।।

Continue reading Chapter 11, Verse 8

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 9

Verse text

सञ्जय उवाच एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः। दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्।।11.9।।

Continue reading Chapter 11, Verse 9

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 10

Verse text

अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्। अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्।।11.10।।

Continue reading Chapter 11, Verse 10

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 11

Verse text

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्। सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्।।11.11।।

Continue reading Chapter 11, Verse 11

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 12

Verse text

दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता। यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः।।11.12।।

Continue reading Chapter 11, Verse 12

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 13

Verse text

तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा। अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा।।11.13।।

Continue reading Chapter 11, Verse 13

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 14

Verse text

ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः। प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत।।11.14।।

Continue reading Chapter 11, Verse 14

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 15

Verse text

अर्जुन उवाच पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्। ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्।।11.15।।

Continue reading Chapter 11, Verse 15

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 16

Verse text

अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्। नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।।11.16।।

Continue reading Chapter 11, Verse 16

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 17

Verse text

किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतोदीप्तिमन्तम्। पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ता द्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्।।11.17।।

Continue reading Chapter 11, Verse 17

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 18

Verse text

त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्। त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे।।11.18।।

Continue reading Chapter 11, Verse 18

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 19

Verse text

अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्। पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रम् स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्।।11.19।।

Continue reading Chapter 11, Verse 19

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 20

Verse text

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः। दृष्ट्वाऽद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्।।11.20।।

Continue reading Chapter 11, Verse 20

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 21

Verse text

अमी हि त्वां सुरसङ्घाः विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति। स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घाः स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः।।11.21।।

Continue reading Chapter 11, Verse 21

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 22

Verse text

रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्िवनौ मरुतश्चोष्मपाश्च। गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे।।11.22।।

Continue reading Chapter 11, Verse 22

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 23

Verse text

रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहूरुपादम्। बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाऽहम्।।11.23।।

Continue reading Chapter 11, Verse 23

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 24

Verse text

नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्। दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो।।11.24।।

Continue reading Chapter 11, Verse 24

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 25

Verse text

दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि। दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास।।11.25।।

Continue reading Chapter 11, Verse 25

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 26

Verse text

अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसङ्घैः। भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथाऽसौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः।।11.26।।

Continue reading Chapter 11, Verse 26

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 27

Verse text

वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि। केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः।।11.27।।

Continue reading Chapter 11, Verse 27

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 28

Verse text

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखाः द्रवन्ति। तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।।11.28।।

Continue reading Chapter 11, Verse 28

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 29

Verse text

यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः। तथैव नाशाय विशन्ति लोका स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः।।11.29।।

Continue reading Chapter 11, Verse 29

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 30

Verse text

लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ता ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः। तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो।।11.30।।

Continue reading Chapter 11, Verse 30

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 31

Verse text

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद। विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्।।11.31।।

Continue reading Chapter 11, Verse 31

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 32

Verse text

श्री भगवानुवाच कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः। ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।11.32।।

Continue reading Chapter 11, Verse 32

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 33

Verse text

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्। मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।।11.33।।

Continue reading Chapter 11, Verse 33

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 34

Verse text

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथाऽन्यानपि योधवीरान्। मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।।11.34।।

Continue reading Chapter 11, Verse 34

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 35

Verse text

सञ्जय उवाच एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी। नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य।।11.35।।

Continue reading Chapter 11, Verse 35

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 36

Verse text

अर्जुन उवाच स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च। रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।11.36।।

Continue reading Chapter 11, Verse 36

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 37

Verse text

कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे। अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्।।11.37।।

Continue reading Chapter 11, Verse 37

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 38

Verse text

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्। वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।11.38।।

Continue reading Chapter 11, Verse 38

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 39

Verse text

वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च। नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते।।11.39।।

Continue reading Chapter 11, Verse 39

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 40

Verse text

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व। अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः।।11.40।।

Continue reading Chapter 11, Verse 40

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 41

Verse text

सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति। अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि।।11.41।।

Continue reading Chapter 11, Verse 41

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 42

Verse text

यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु। एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्।।11.42।।

Continue reading Chapter 11, Verse 42

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 43

Verse text

पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्। न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यो लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव।।11.43।।

Continue reading Chapter 11, Verse 43

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 44

Verse text

तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्। पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्।।11.44।।

Continue reading Chapter 11, Verse 44

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 45

Verse text

अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे। तदेव मे दर्शय देव रूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास।।11.45।।

Continue reading Chapter 11, Verse 45

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 46

Verse text

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव। तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते।।11.46।।

Continue reading Chapter 11, Verse 46

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 47

Verse text

श्री भगवानुवाच मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं परं दर्शितमात्मयोगात्। तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम्।।11.47।।

Continue reading Chapter 11, Verse 47

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 48

Verse text

न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः। एवंरूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर।।11.48।।

Continue reading Chapter 11, Verse 48

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 49

Verse text

मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम्। व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य।।11.49।।

Continue reading Chapter 11, Verse 49

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 50

Verse text

सञ्जय उवाच इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः। आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा।।11.50।।

Continue reading Chapter 11, Verse 50

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 51

Verse text

अर्जुन उवाच दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तवसौम्यं जनार्दन। इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।।11.51।।

Continue reading Chapter 11, Verse 51

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 52

Verse text

श्री भगवानुवाच सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम। देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः।।11.52।।

Continue reading Chapter 11, Verse 52

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 53

Verse text

नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया। शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा।।11.53।।

Continue reading Chapter 11, Verse 53

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 54

Verse text

भक्त्या त्वनन्यया शक्यमहमेवंविधोऽर्जुन। ज्ञातुं दृष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप।।11.54।।

Continue reading Chapter 11, Verse 54

Top

11.विश्वरूपदर्शनयोग, Verse 55

Verse text

मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः। निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव।।11.55।।

Continue reading Chapter 11, Verse 55

Top


General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office |
Travel: Places to visit | Travel Itineraries | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels |
Literature: Philosophers | Books |
Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails |
History: Chinese history | Indian history |
Education: UK universities | US universities |