General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office | || Travel: Places to visit | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels | || Literature: Philosophers | Books | || Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails | || History: Chinese history | Indian history | || Education: UK universities | US universities | ||
1. अर्जुनविषादयोग | 2. सांख्ययोग | 3. कर्मयोग | 4. ज्ञानकर्मसंन्यासयोग | 5. कर्मसंन्यासयोग | 6. ध्यानयोग | 7. ज्ञानविज्ञानयोग | 8. अक्षरब्रह्मयोग | 9. राजविद्याराजगुह्ययोग | 10. विभूतियोग | 11. विश्वरूपदर्शनयोग | 12. भक्तियोग | 13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग | 14. गुणत्रयविभागयोग | 15. पुरुषोत्तमयोग | 16. दैवासुरसम्पद्विभागयोग | 17. श्रद्धात्रयविभागयोग | 18. मोक्षसंन्यासयोग |

9. राजविद्याराजगुह्ययोग (Raja Vidya Yoga)

Chapter 9, Verse 1 | Chapter 9, Verse 2 | Chapter 9, Verse 3 | Chapter 9, Verse 4 | Chapter 9, Verse 5 | Chapter 9, Verse 6 | Chapter 9, Verse 7 | Chapter 9, Verse 8 | Chapter 9, Verse 9 | Chapter 9, Verse 10 | Chapter 9, Verse 11 | Chapter 9, Verse 12 | Chapter 9, Verse 13 | Chapter 9, Verse 14 | Chapter 9, Verse 15 | Chapter 9, Verse 16 | Chapter 9, Verse 17 | Chapter 9, Verse 18 | Chapter 9, Verse 19 | Chapter 9, Verse 20 | Chapter 9, Verse 21 | Chapter 9, Verse 22 | Chapter 9, Verse 23 | Chapter 9, Verse 24 | Chapter 9, Verse 25 | Chapter 9, Verse 26 | Chapter 9, Verse 27 | Chapter 9, Verse 28 | Chapter 9, Verse 29 | Chapter 9, Verse 30 | Chapter 9, Verse 31 | Chapter 9, Verse 32 | Chapter 9, Verse 33 | Chapter 9, Verse 34 |

Chapter 9 - राजविद्याराजगुह्ययोग

भगवद गीता का नौवां अध्याय राजविद्याराजगुह्ययोग है। इस अध्याय में, कृष्ण समझाते हैं कि वह सर्वोच्च हैं और यह भौतिक संसार उनकी योगमाया द्वारा रचित और खंडित होता रहता है अथवा मनुष्य उनकी देखरेख में आते जाते रहते हैं। वे हमारी आध्यात्मिक जागरूकता के प्रति भक्ति की भूमिका और महत्व का वर्णन करते हैं। ऐसी भक्ति में मनुष्य को भगवन के लिए ही जीवित रहना चाहिए, अपना सर्वस्व भगवन को ही समर्पित करना चाहिए और सबकुछ भगवन के लिए ही करना चाहिए। जो इस प्रकार की भक्ति का अनुसरण करता है वह इस भौतिक संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है और भगवान के साथ एकजुट हो जाता है।

The ninth chapter of the Bhagavad Gita is "Raja Vidya Yoga". In this chapter, Krishna explains that He is Supreme and how this material existence is created, maintained and destroyed by His Yogmaya and all beings come and go under his supervision. He reveals the Role and the Importance of Bhakti (transcendental devotional service) towards our Spiritual Awakening. In such devotion, one must live for the God, offer everything that he possesses to Him and do everything for Him only. One who follows such devotion becomes free from the bonds of this material world and unites with the Lord.


9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 1

Verse text

श्री भगवानुवाच इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे। ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।9.1।।

Continue reading Chapter 9, Verse 1

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 2

Verse text

राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्। प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्।।9.2।।

Continue reading Chapter 9, Verse 2

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 3

Verse text

अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप। अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि।।9.3।।

Continue reading Chapter 9, Verse 3

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 4

Verse text

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना। मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।।9.4।।

Continue reading Chapter 9, Verse 4

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 5

Verse text

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्। भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः।।9.5।।

Continue reading Chapter 9, Verse 5

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 6

Verse text

यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्। तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय।।9.6।।

Continue reading Chapter 9, Verse 6

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 7

Verse text

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्। कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्।।9.7।।

Continue reading Chapter 9, Verse 7

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 8

Verse text

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः। भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्।।9.8।।

Continue reading Chapter 9, Verse 8

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 9

Verse text

न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय। उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु।।9.9।।

Continue reading Chapter 9, Verse 9

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 10

Verse text

मयाऽध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्। हेतुनाऽनेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते।।9.10।।

Continue reading Chapter 9, Verse 10

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 11

Verse text

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्। परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।9.11।।

Continue reading Chapter 9, Verse 11

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 12

Verse text

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः। राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः।।9.12।।

Continue reading Chapter 9, Verse 12

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 13

Verse text

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः। भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।9.13।।

Continue reading Chapter 9, Verse 13

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 14

Verse text

सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रताः। नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते।।9.14।।

Continue reading Chapter 9, Verse 14

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 15

Verse text

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते। एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।9.15।।

Continue reading Chapter 9, Verse 15

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 16

Verse text

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाऽहमहमौषधम्। मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्।।9.16।।

Continue reading Chapter 9, Verse 16

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 17

Verse text

पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामहः। वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक् साम यजुरेव च।।9.17।।

Continue reading Chapter 9, Verse 17

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 18

Verse text

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्। प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्।।9.18।।

Continue reading Chapter 9, Verse 18

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 19

Verse text

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च। अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन।।9.19।।

Continue reading Chapter 9, Verse 19

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 20

Verse text

त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते। ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्।।9.20।।

Continue reading Chapter 9, Verse 20

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 21

Verse text

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति। एव त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते।।9.21।।

Continue reading Chapter 9, Verse 21

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 22

Verse text

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।9.22।।

Continue reading Chapter 9, Verse 22

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 23

Verse text

येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयाऽन्विताः। तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।।9.23।।

Continue reading Chapter 9, Verse 23

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 24

Verse text

अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च। न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते।।9.24।।

Continue reading Chapter 9, Verse 24

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 25

Verse text

यान्ति देवव्रता देवान् पितृ़न्यान्ति पितृव्रताः। भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।9.25।।

Continue reading Chapter 9, Verse 25

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 26

Verse text

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।

Continue reading Chapter 9, Verse 26

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 27

Verse text

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्। यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्।।9.27।।

Continue reading Chapter 9, Verse 27

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 28

Verse text

शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः। संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।।9.28।।

Continue reading Chapter 9, Verse 28

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 29

Verse text

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः। ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।9.29।।

Continue reading Chapter 9, Verse 29

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 30

Verse text

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्। साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।9.30।।

Continue reading Chapter 9, Verse 30

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 31

Verse text

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति। कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति।।9.31।।

Continue reading Chapter 9, Verse 31

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 32

Verse text

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः। स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्।।9.32।।

Continue reading Chapter 9, Verse 32

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 33

Verse text

किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा। अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।।9.33।।

Continue reading Chapter 9, Verse 33

Top

9.राजविद्याराजगुह्ययोग, Verse 34

Verse text

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।9.34।।

Continue reading Chapter 9, Verse 34

Top


General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office | || Travel: Places to visit | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels | || Literature: Philosophers | Books | || Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails | || History: Chinese history | Indian history | || Education: UK universities | US universities | ||