1. अर्जुनविषादयोग | 2. सांख्ययोग | 3. कर्मयोग | 4. ज्ञानकर्मसंन्यासयोग | 5. कर्मसंन्यासयोग | 6. ध्यानयोग | 7. ज्ञानविज्ञानयोग | 8. अक्षरब्रह्मयोग | 9. राजविद्याराजगुह्ययोग | 10. विभूतियोग | 11. विश्वरूपदर्शनयोग | 12. भक्तियोग | 13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग | 14. गुणत्रयविभागयोग | 15. पुरुषोत्तमयोग | 16. दैवासुरसम्पद्विभागयोग | 17. श्रद्धात्रयविभागयोग | 18. मोक्षसंन्यासयोग |

6. ध्यानयोग (Dhyana Yoga)

Chapter 6, Verse 1 | Chapter 6, Verse 2 | Chapter 6, Verse 3 | Chapter 6, Verse 4 | Chapter 6, Verse 5 | Chapter 6, Verse 6 | Chapter 6, Verse 7 | Chapter 6, Verse 8 | Chapter 6, Verse 9 | Chapter 6, Verse 10 | Chapter 6, Verse 11 | Chapter 6, Verse 12 | Chapter 6, Verse 13 | Chapter 6, Verse 14 | Chapter 6, Verse 15 | Chapter 6, Verse 16 | Chapter 6, Verse 17 | Chapter 6, Verse 18 | Chapter 6, Verse 19 | Chapter 6, Verse 20 | Chapter 6, Verse 21 | Chapter 6, Verse 22 | Chapter 6, Verse 23 | Chapter 6, Verse 24 | Chapter 6, Verse 25 | Chapter 6, Verse 26 | Chapter 6, Verse 27 | Chapter 6, Verse 28 | Chapter 6, Verse 29 | Chapter 6, Verse 30 | Chapter 6, Verse 31 | Chapter 6, Verse 32 | Chapter 6, Verse 33 | Chapter 6, Verse 34 | Chapter 6, Verse 35 | Chapter 6, Verse 36 | Chapter 6, Verse 37 | Chapter 6, Verse 38 | Chapter 6, Verse 39 | Chapter 6, Verse 40 | Chapter 6, Verse 41 | Chapter 6, Verse 42 | Chapter 6, Verse 43 | Chapter 6, Verse 44 | Chapter 6, Verse 45 | Chapter 6, Verse 46 | Chapter 6, Verse 47 |

Chapter 6 - ध्यानयोग

भगवद गीता का छठा अध्याय ध्यान योग है। इस अध्याय में कृष्ण बताते हैं कि हम किस प्रकार ध्यान योग का अभ्यास कर सकते हैं। वे ध्यान की तैयारी में कर्म की भूमिका पर चर्चा करते हैं अथवा बताते हैं कि किस प्रकार भक्ति में किया गए कर्म मनुष्ये के मन को शुद्ध करते हैं और उसकी आध्यात्मिक चेतना की वृद्धि में सहायता करते हैं। वे उन बाधाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं जो कि मनुष्य को अपने दिमाग को नियंत्रित करते समय झेलनी पड़ती हैं अथवा उन सटीक तरीकों का वर्णन करते हैं जिनसे एक मनुष्य अपने दिमाग को जीत सकता है। उन्होंने प्रकट किया की हम किस प्रकार परमात्मा पर अपना ध्यान केंद्रित करके भगवान के साथ एक हो सकते हैं।

The sixth chapter of the Bhagavad Gita is "Dhyana Yoga". In this chapter, Krishna reveals the "Yoga of Meditation" and how to practise this Yoga. He discusses the role of action in preparing for Meditation, how performing duties in devotion purifies one's mind and heightens one's spiritual consciousness. He explains in detail the obstacles that one faces when trying to control their mind and the exact methods by which one can conquer their mind. He reveals how one can focus their mind on Paramatma and unite with the God.


6.ध्यानयोग, Verse 1

Verse text

श्री भगवानुवाच अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः। स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः।।6.1।।

Continue reading Chapter 6, Verse 1

Top

6.ध्यानयोग, Verse 2

Verse text

यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव। न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन।।6.2।।

Continue reading Chapter 6, Verse 2

Top

6.ध्यानयोग, Verse 3

Verse text

आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते। योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते।।6.3।।

Continue reading Chapter 6, Verse 3

Top

6.ध्यानयोग, Verse 4

Verse text

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते। सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते।।6.4।।

Continue reading Chapter 6, Verse 4

Top

6.ध्यानयोग, Verse 5

Verse text

उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।।

Continue reading Chapter 6, Verse 5

Top

6.ध्यानयोग, Verse 6

Verse text

बन्धुरात्माऽऽत्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः। अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।6.6।।

Continue reading Chapter 6, Verse 6

Top

6.ध्यानयोग, Verse 7

Verse text

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः। शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।6.7।।

Continue reading Chapter 6, Verse 7

Top

6.ध्यानयोग, Verse 8

Verse text

ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः। युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः।।6.8।।

Continue reading Chapter 6, Verse 8

Top

6.ध्यानयोग, Verse 9

Verse text

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु। साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते।।6.9।।

Continue reading Chapter 6, Verse 9

Top

6.ध्यानयोग, Verse 10

Verse text

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः। एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः।।6.10।।

Continue reading Chapter 6, Verse 10

Top

6.ध्यानयोग, Verse 11

Verse text

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः। नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्।।6.11।।

Continue reading Chapter 6, Verse 11

Top

6.ध्यानयोग, Verse 12

Verse text

तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः। उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये।।6.12।।

Continue reading Chapter 6, Verse 12

Top

6.ध्यानयोग, Verse 13

Verse text

समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः। संप्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्।।6.13।।

Continue reading Chapter 6, Verse 13

Top

6.ध्यानयोग, Verse 14

Verse text

प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः। मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः।।6.14।।

Continue reading Chapter 6, Verse 14

Top

6.ध्यानयोग, Verse 15

Verse text

युञ्जन्नेवं सदाऽऽत्मानं योगी नियतमानसः। शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति।।6.15।।

Continue reading Chapter 6, Verse 15

Top

6.ध्यानयोग, Verse 16

Verse text

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः। न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।।6.16।।

Continue reading Chapter 6, Verse 16

Top

6.ध्यानयोग, Verse 17

Verse text

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु। युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।6.17।।

Continue reading Chapter 6, Verse 17

Top

6.ध्यानयोग, Verse 18

Verse text

यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते। निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा।।6.18।।

Continue reading Chapter 6, Verse 18

Top

6.ध्यानयोग, Verse 19

Verse text

यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता। योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः।।6.19।।

Continue reading Chapter 6, Verse 19

Top

6.ध्यानयोग, Verse 20

Verse text

यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया। यत्र चैवात्मनाऽऽत्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।।6.20।।

Continue reading Chapter 6, Verse 20

Top

6.ध्यानयोग, Verse 21

Verse text

सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम्। वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः।।6.21।।

Continue reading Chapter 6, Verse 21

Top

6.ध्यानयोग, Verse 22

Verse text

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः। यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते।।6.22।।

Continue reading Chapter 6, Verse 22

Top

6.ध्यानयोग, Verse 23

Verse text

तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्। स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा।।6.23।।

Continue reading Chapter 6, Verse 23

Top

6.ध्यानयोग, Verse 24

Verse text

सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः। मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः।।6.24।।

Continue reading Chapter 6, Verse 24

Top

6.ध्यानयोग, Verse 25

Verse text

शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया। आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्।।6.25।।

Continue reading Chapter 6, Verse 25

Top

6.ध्यानयोग, Verse 26

Verse text

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।6.26।।

Continue reading Chapter 6, Verse 26

Top

6.ध्यानयोग, Verse 27

Verse text

प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्। उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्।।6.27।।

Continue reading Chapter 6, Verse 27

Top

6.ध्यानयोग, Verse 28

Verse text

युञ्जन्नेवं सदाऽऽत्मानं योगी विगतकल्मषः। सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते।।6.28।।

Continue reading Chapter 6, Verse 28

Top

6.ध्यानयोग, Verse 29

Verse text

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि। ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः।।6.29।।

Continue reading Chapter 6, Verse 29

Top

6.ध्यानयोग, Verse 30

Verse text

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।6.30।।

Continue reading Chapter 6, Verse 30

Top

6.ध्यानयोग, Verse 31

Verse text

सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः। सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते।।6.31।।

Continue reading Chapter 6, Verse 31

Top

6.ध्यानयोग, Verse 32

Verse text

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन। सुखं वा यदि वा दुःखं सः योगी परमो मतः।।6.32।।

Continue reading Chapter 6, Verse 32

Top

6.ध्यानयोग, Verse 33

Verse text

अर्जुन उवाच योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन। एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात् स्थितिं स्थिराम्।।6.33।।

Continue reading Chapter 6, Verse 33

Top

6.ध्यानयोग, Verse 34

Verse text

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्। तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।

Continue reading Chapter 6, Verse 34

Top

6.ध्यानयोग, Verse 35

Verse text

श्री भगवानुवाच असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।।

Continue reading Chapter 6, Verse 35

Top

6.ध्यानयोग, Verse 36

Verse text

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः। वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः।।6.36।।

Continue reading Chapter 6, Verse 36

Top

6.ध्यानयोग, Verse 37

Verse text

अर्जुन उवाच अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः। अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति।।6.37।।

Continue reading Chapter 6, Verse 37

Top

6.ध्यानयोग, Verse 38

Verse text

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति। अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि।।6.38।।

Continue reading Chapter 6, Verse 38

Top

6.ध्यानयोग, Verse 39

Verse text

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः। त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते।।6.39।।

Continue reading Chapter 6, Verse 39

Top

6.ध्यानयोग, Verse 40

Verse text

श्री भगवानुवाच पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते। नहि कल्याणकृत्कश्िचद्दुर्गतिं तात गच्छति।।6.40।।

Continue reading Chapter 6, Verse 40

Top

6.ध्यानयोग, Verse 41

Verse text

प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः। शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।।6.41।।

Continue reading Chapter 6, Verse 41

Top

6.ध्यानयोग, Verse 42

Verse text

अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्।।6.42।।

Continue reading Chapter 6, Verse 42

Top

6.ध्यानयोग, Verse 43

Verse text

तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्। यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन।।6.43।।

Continue reading Chapter 6, Verse 43

Top

6.ध्यानयोग, Verse 44

Verse text

पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः। जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते।।6.44।।

Continue reading Chapter 6, Verse 44

Top

6.ध्यानयोग, Verse 45

Verse text

प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः। अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्।।6.45।।

Continue reading Chapter 6, Verse 45

Top

6.ध्यानयोग, Verse 46

Verse text

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः। कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन।।6.46।।

Continue reading Chapter 6, Verse 46

Top

6.ध्यानयोग, Verse 47

Verse text

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।6.47।।

Continue reading Chapter 6, Verse 47

Top


General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office |
Travel: Places to visit | Travel Itineraries | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels |
Literature: Philosophers | Books |
Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails |
History: Chinese history | Indian history |
Education: UK universities | US universities |