General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office | || Travel: Places to visit | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels | || Literature: Philosophers | Books | || Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails | || History: Chinese history | Indian history | || Education: UK universities | US universities | ||
1. अर्जुनविषादयोग | 2. सांख्ययोग | 3. कर्मयोग | 4. ज्ञानकर्मसंन्यासयोग | 5. कर्मसंन्यासयोग | 6. ध्यानयोग | 7. ज्ञानविज्ञानयोग | 8. अक्षरब्रह्मयोग | 9. राजविद्याराजगुह्ययोग | 10. विभूतियोग | 11. विश्वरूपदर्शनयोग | 12. भक्तियोग | 13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग | 14. गुणत्रयविभागयोग | 15. पुरुषोत्तमयोग | 16. दैवासुरसम्पद्विभागयोग | 17. श्रद्धात्रयविभागयोग | 18. मोक्षसंन्यासयोग |

18. मोक्षसंन्यासयोग (Moksha Sanyaas Yoga)

Chapter 18, Verse 1 | Chapter 18, Verse 2 | Chapter 18, Verse 3 | Chapter 18, Verse 4 | Chapter 18, Verse 5 | Chapter 18, Verse 6 | Chapter 18, Verse 7 | Chapter 18, Verse 8 | Chapter 18, Verse 9 | Chapter 18, Verse 10 | Chapter 18, Verse 11 | Chapter 18, Verse 12 | Chapter 18, Verse 13 | Chapter 18, Verse 14 | Chapter 18, Verse 15 | Chapter 18, Verse 16 | Chapter 18, Verse 17 | Chapter 18, Verse 18 | Chapter 18, Verse 19 | Chapter 18, Verse 20 | Chapter 18, Verse 21 | Chapter 18, Verse 22 | Chapter 18, Verse 23 | Chapter 18, Verse 24 | Chapter 18, Verse 25 | Chapter 18, Verse 26 | Chapter 18, Verse 27 | Chapter 18, Verse 28 | Chapter 18, Verse 29 | Chapter 18, Verse 30 | Chapter 18, Verse 31 | Chapter 18, Verse 32 | Chapter 18, Verse 33 | Chapter 18, Verse 34 | Chapter 18, Verse 35 | Chapter 18, Verse 36 | Chapter 18, Verse 37 | Chapter 18, Verse 38 | Chapter 18, Verse 39 | Chapter 18, Verse 40 | Chapter 18, Verse 41 | Chapter 18, Verse 42 | Chapter 18, Verse 43 | Chapter 18, Verse 44 | Chapter 18, Verse 45 | Chapter 18, Verse 46 | Chapter 18, Verse 47 | Chapter 18, Verse 48 | Chapter 18, Verse 49 | Chapter 18, Verse 50 | Chapter 18, Verse 51 | Chapter 18, Verse 52 | Chapter 18, Verse 53 | Chapter 18, Verse 54 | Chapter 18, Verse 55 | Chapter 18, Verse 56 | Chapter 18, Verse 57 | Chapter 18, Verse 58 | Chapter 18, Verse 59 | Chapter 18, Verse 60 | Chapter 18, Verse 61 | Chapter 18, Verse 62 | Chapter 18, Verse 63 | Chapter 18, Verse 64 | Chapter 18, Verse 65 | Chapter 18, Verse 66 | Chapter 18, Verse 67 | Chapter 18, Verse 68 | Chapter 18, Verse 69 | Chapter 18, Verse 70 | Chapter 18, Verse 71 | Chapter 18, Verse 72 | Chapter 18, Verse 73 | Chapter 18, Verse 74 | Chapter 18, Verse 75 | Chapter 18, Verse 76 | Chapter 18, Verse 77 | Chapter 18, Verse 78 |

Chapter 18 - मोक्षसंन्यासयोग

भगवद गीता का अठारहवा अध्याय मोक्षसन्यासयोग है। अर्जुन कृष्ण से अनुरोध करते हैं कि वे संन्यास और त्याग के बीच अंतर को समझाने की कृपा करें। कृष्ण बताते हैं कि एक संन्यासी वह है जो आध्यात्मिक अनुशासन का अभ्यास करने के लिए परिवार और समाज को त्याग देता है जबकि एक त्यागी वह है जो अपने कर्मों के फलों कि चिंता करे बिना भगवन को समर्पित करके कर्म करता रहता है। कृष्ण बताते हैं कि त्याग संन्यास से श्रेष्ठ है। फिर कृष्णा भौतिक संसार के तीन प्रकार के गुणों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं। कृष्णा घोषणा करते हैं कि परमात्मा की शुद्ध एवं सत्य भक्ति ही आध्यात्मिकता का उच्चतम मार्ग है। अगर हम हर क्षण उनका स्मरण करते रहें, उनका नाम जपते रहें, अपना सर्वस्व उनको समर्पित कर दें, उन्हें ही अपना सर्वोच्च लक्ष्य बना लें तो उनकी कृपा से हम निश्चित रूप से सभी बाधाओं और कठिनाइओं को दूर कर पाएंगे और इस जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो पाएंगे।

The eighteenth chapter of the Bhagavad Gita is "Moksha Sanyas Yoga". Arjuna requests the Lord to explain the difference between the two types of renunciations - sanyaas(renunciation of actions) and tyaag(renunciation of desires). Krishna explains that a sanyaasi is one who abandons family and society in order to practise spiritual discipline whereas a tyaagi is one who performs their duties without attachment to the rewards of their actions and dedicating them to the God. Krishna recommends the second kind of renunciation - tyaag. Krishna then gives a detailed analysis of the effects of the three modes of material nature. He declares that the highest path of spirituality is pure, unconditional loving service unto the Supreme Divine Personality, Krishna. If we always remember Him, keep chanting His name and dedicate all our actions unto Him, take refuge in Him and make Him our Supreme goal, then by His grace, we will surely overcome all obstacles and difficulties and be freed from this cycle of birth and death.


18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 1

Verse text

अर्जुन उवाच संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्। त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।।18.1।।

Continue reading Chapter 18, Verse 1

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 2

Verse text

श्री भगवानुवाच काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः। सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः।।18.2।।

Continue reading Chapter 18, Verse 2

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 3

Verse text

त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिणः। यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे।।18.3।।

Continue reading Chapter 18, Verse 3

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 4

Verse text

निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम।त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः संप्रकीर्तितः।।18.4।।

Continue reading Chapter 18, Verse 4

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 5

Verse text

यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।

Continue reading Chapter 18, Verse 5

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 6

Verse text

एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च।कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्िचतं मतमुत्तमम्।।18.6।।

Continue reading Chapter 18, Verse 6

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 7

Verse text

नियतस्य तु संन्यासः कर्मणो नोपपद्यते।मोहात्तस्य परित्यागस्तामसः परिकीर्तितः।।18.7।।

Continue reading Chapter 18, Verse 7

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 8

Verse text

दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्त्यजेत्।स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्।।18.8।।

Continue reading Chapter 18, Verse 8

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 9

Verse text

कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः।।18.9।।

Continue reading Chapter 18, Verse 9

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 10

Verse text

न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते।त्यागी सत्त्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः।।18.10।।

Continue reading Chapter 18, Verse 10

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 11

Verse text

न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते।।18.11।।

Continue reading Chapter 18, Verse 11

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 12

Verse text

अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम्।भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनां क्वचित्।।18.12।।

Continue reading Chapter 18, Verse 12

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 13

Verse text

पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे।सांख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम्।।18.13।।

Continue reading Chapter 18, Verse 13

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 14

Verse text

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।।18.14।।

Continue reading Chapter 18, Verse 14

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 15

Verse text

शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः।न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतवः।।18.15।।

Continue reading Chapter 18, Verse 15

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 16

Verse text

तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः।पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मतिः।।18.16।।

Continue reading Chapter 18, Verse 16

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 17

Verse text

यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते।।18.17।।

Continue reading Chapter 18, Verse 17

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 18

Verse text

ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना।करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः।।18.18।।

Continue reading Chapter 18, Verse 18

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 19

Verse text

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः।प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।।18.19।।

Continue reading Chapter 18, Verse 19

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 20

Verse text

सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।।18.20।।

Continue reading Chapter 18, Verse 20

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 21

Verse text

पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान्।वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्।।18.21।।

Continue reading Chapter 18, Verse 21

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 22

Verse text

यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम्।अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम्।।18.22।।

Continue reading Chapter 18, Verse 22

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 23

Verse text

नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम्।अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते।।18.23।।

Continue reading Chapter 18, Verse 23

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 24

Verse text

यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुनः।क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम्।।18.24।।

Continue reading Chapter 18, Verse 24

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 25

Verse text

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनपेक्ष्य च पौरुषम्।मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते।।18.25।।

Continue reading Chapter 18, Verse 25

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 26

Verse text

मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।

Continue reading Chapter 18, Verse 26

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 27

Verse text

रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः।।18.27।।

Continue reading Chapter 18, Verse 27

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 28

Verse text

अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः।विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते।।18.28।।

Continue reading Chapter 18, Verse 28

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 29

Verse text

बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं श्रृणु।प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय।।18.29।।

Continue reading Chapter 18, Verse 29

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 30

Verse text

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी।।18.30।।

Continue reading Chapter 18, Verse 30

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 31

Verse text

यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च।अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी।।18.31।।

Continue reading Chapter 18, Verse 31

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 32

Verse text

अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसाऽऽवृता।सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी।।18.32।।

Continue reading Chapter 18, Verse 32

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 33

Verse text

धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः।योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी।।18.33।।

Continue reading Chapter 18, Verse 33

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 34

Verse text

यया तु धर्मकामार्थान् धृत्या धारयतेऽर्जुन।प्रसङ्गेन फलाकाङ्क्षी धृतिः सा पार्थ राजसी।।18.34।।

Continue reading Chapter 18, Verse 34

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 35

Verse text

यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च।न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी।।18.35।।

Continue reading Chapter 18, Verse 35

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 36

Verse text

सुखं त्विदानीं त्रिविधं श्रृणु मे भरतर्षभ।अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति।।18.36।।

Continue reading Chapter 18, Verse 36

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 37

Verse text

यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्।तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम्।।18.37।।

Continue reading Chapter 18, Verse 37

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 38

Verse text

विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तदग्रेऽमृतोपमम्।परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम्।।18.38।।

Continue reading Chapter 18, Verse 38

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 39

Verse text

यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः।निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्।।18.39।।

Continue reading Chapter 18, Verse 39

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 40

Verse text

न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः।सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्ित्रभिर्गुणैः।।18.40।।

Continue reading Chapter 18, Verse 40

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 41

Verse text

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप।कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः।।18.41।।

Continue reading Chapter 18, Verse 41

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 42

Verse text

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।18.42।।

Continue reading Chapter 18, Verse 42

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 43

Verse text

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।18.43।।

Continue reading Chapter 18, Verse 43

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 44

Verse text

कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्।परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम्।।18.44।।

Continue reading Chapter 18, Verse 44

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 45

Verse text

स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु।।18.45।।

Continue reading Chapter 18, Verse 45

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 46

Verse text

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।।

Continue reading Chapter 18, Verse 46

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 47

Verse text

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।18.47।।

Continue reading Chapter 18, Verse 47

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 48

Verse text

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।

Continue reading Chapter 18, Verse 48

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 49

Verse text

असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।।18.49।।

Continue reading Chapter 18, Verse 49

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 50

Verse text

सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे।समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा।।18.50।।

Continue reading Chapter 18, Verse 50

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 51

Verse text

बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।।

Continue reading Chapter 18, Verse 51

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 52

Verse text

विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।18.52।।

Continue reading Chapter 18, Verse 52

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 53

Verse text

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।18.53।।

Continue reading Chapter 18, Verse 53

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 54

Verse text

ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्।।18.54।।

Continue reading Chapter 18, Verse 54

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 55

Verse text

भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः।ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्।।18.55।।

Continue reading Chapter 18, Verse 55

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 56

Verse text

सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः।मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्।।18.56।।

Continue reading Chapter 18, Verse 56

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 57

Verse text

चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव।।18.57।।

Continue reading Chapter 18, Verse 57

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 58

Verse text

मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि।।18.58।।

Continue reading Chapter 18, Verse 58

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 59

Verse text

यदहङ्कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे।मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति।।18.59।।

Continue reading Chapter 18, Verse 59

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 60

Verse text

स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा।कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत्।।18.60।।

Continue reading Chapter 18, Verse 60

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 61

Verse text

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61।।

Continue reading Chapter 18, Verse 61

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 62

Verse text

तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्।।18.62।।

Continue reading Chapter 18, Verse 62

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 63

Verse text

इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।18.63।।

Continue reading Chapter 18, Verse 63

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 64

Verse text

सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः।इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्।।18.64।।

Continue reading Chapter 18, Verse 64

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 65

Verse text

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।।

Continue reading Chapter 18, Verse 65

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 66

Verse text

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।।

Continue reading Chapter 18, Verse 66

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 67

Verse text

इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन।न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति।।18.67।।

Continue reading Chapter 18, Verse 67

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 68

Verse text

य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति।भक्ितं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः।।18.68।।

Continue reading Chapter 18, Verse 68

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 69

Verse text

न च तस्मान्मनुष्येषु कश्िचन्मे प्रियकृत्तमः।भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।।18.69।।

Continue reading Chapter 18, Verse 69

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 70

Verse text

अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः।ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः।।18.70।।

Continue reading Chapter 18, Verse 70

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 71

Verse text

श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः।सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्।।18.71।।

Continue reading Chapter 18, Verse 71

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 72

Verse text

कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा।कच्चिदज्ञानसंमोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय।।18.72।।

Continue reading Chapter 18, Verse 72

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 73

Verse text

अर्जुन उवाचनष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।।18.73।।

Continue reading Chapter 18, Verse 73

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 74

Verse text

सञ्जय उवाचइत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मनः।संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम्।।18.74।।

Continue reading Chapter 18, Verse 74

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 75

Verse text

व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्गुह्यमहं परम्।योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम्।।18.75।।

Continue reading Chapter 18, Verse 75

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 76

Verse text

राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्।केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः।।18.76।।

Continue reading Chapter 18, Verse 76

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 77

Verse text

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः। विस्मयो मे महान् राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः।।18.77।।

Continue reading Chapter 18, Verse 77

Top

18.मोक्षसंन्यासयोग, Verse 78

Verse text

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।18.78।

Continue reading Chapter 18, Verse 78

Top


General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office | || Travel: Places to visit | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels | || Literature: Philosophers | Books | || Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails | || History: Chinese history | Indian history | || Education: UK universities | US universities | ||