General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office | || Travel: Places to visit | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels | || Literature: Philosophers | Books | || Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails | || History: Chinese history | Indian history | || Education: UK universities | US universities | ||
1. अर्जुनविषादयोग | 2. सांख्ययोग | 3. कर्मयोग | 4. ज्ञानकर्मसंन्यासयोग | 5. कर्मसंन्यासयोग | 6. ध्यानयोग | 7. ज्ञानविज्ञानयोग | 8. अक्षरब्रह्मयोग | 9. राजविद्याराजगुह्ययोग | 10. विभूतियोग | 11. विश्वरूपदर्शनयोग | 12. भक्तियोग | 13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग | 14. गुणत्रयविभागयोग | 15. पुरुषोत्तमयोग | 16. दैवासुरसम्पद्विभागयोग | 17. श्रद्धात्रयविभागयोग | 18. मोक्षसंन्यासयोग |

2. सांख्ययोग (Sankhya Yoga)

Chapter 2, Verse 1 | Chapter 2, Verse 2 | Chapter 2, Verse 3 | Chapter 2, Verse 4 | Chapter 2, Verse 5 | Chapter 2, Verse 6 | Chapter 2, Verse 7 | Chapter 2, Verse 8 | Chapter 2, Verse 9 | Chapter 2, Verse 10 | Chapter 2, Verse 11 | Chapter 2, Verse 12 | Chapter 2, Verse 13 | Chapter 2, Verse 14 | Chapter 2, Verse 15 | Chapter 2, Verse 16 | Chapter 2, Verse 17 | Chapter 2, Verse 18 | Chapter 2, Verse 19 | Chapter 2, Verse 20 | Chapter 2, Verse 21 | Chapter 2, Verse 22 | Chapter 2, Verse 23 | Chapter 2, Verse 24 | Chapter 2, Verse 25 | Chapter 2, Verse 26 | Chapter 2, Verse 27 | Chapter 2, Verse 28 | Chapter 2, Verse 29 | Chapter 2, Verse 30 | Chapter 2, Verse 31 | Chapter 2, Verse 32 | Chapter 2, Verse 33 | Chapter 2, Verse 34 | Chapter 2, Verse 35 | Chapter 2, Verse 36 | Chapter 2, Verse 37 | Chapter 2, Verse 38 | Chapter 2, Verse 39 | Chapter 2, Verse 40 | Chapter 2, Verse 41 | Chapter 2, Verse 42 | Chapter 2, Verse 43 | Chapter 2, Verse 44 | Chapter 2, Verse 45 | Chapter 2, Verse 46 | Chapter 2, Verse 47 | Chapter 2, Verse 48 | Chapter 2, Verse 49 | Chapter 2, Verse 50 | Chapter 2, Verse 51 | Chapter 2, Verse 52 | Chapter 2, Verse 53 | Chapter 2, Verse 54 | Chapter 2, Verse 55 | Chapter 2, Verse 56 | Chapter 2, Verse 57 | Chapter 2, Verse 58 | Chapter 2, Verse 59 | Chapter 2, Verse 60 | Chapter 2, Verse 61 | Chapter 2, Verse 62 | Chapter 2, Verse 63 | Chapter 2, Verse 64 | Chapter 2, Verse 65 | Chapter 2, Verse 66 | Chapter 2, Verse 67 | Chapter 2, Verse 68 | Chapter 2, Verse 69 | Chapter 2, Verse 70 | Chapter 2, Verse 71 | Chapter 2, Verse 72 |

Chapter 2 - सांख्ययोग

भगवद गीता का दूसरा अध्याय सांख्य योग है। यह अध्याय भगवद गीता का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है क्योंकि इसमें भगवान श्रीकृष्ण संपूर्ण गीता की शिक्षाओं को संघनित करते हैं। यह अध्याय पूरी गीता का सार है। सांख्य योग को 4 मुख्य विषयों में वर्गीकृत किया जा सकता है - १. अर्जुन ने पूरी तरह से भगवान कृष्ण को आत्मसमर्पण किया और उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया। २. सभी दु:खों के मुख्य कारणों की व्याख्या, जो स्व की वास्तविक प्रकृति की अज्ञानता है। ३. कर्मयोग - अपने कर्मों के फलों से जुड़े बिना नि:स्वार्थ क्रिया का अनुशासन। ४. एक परिपूर्ण मनुष्य का विवरण - जिसका मस्तिष्क स्थिर और एक-इशारा है।

The second chapter of the Bhagavad Gita is "Sankhya Yoga". This is the most important chapter of the Bhagavad Gita as Lord Krishna condenses the teachings of the entire Gita in this chapter. This chapter is the essence of the entire Gita. "Sankhya Yoga" can be categorized into 4 main topics - 1. Arjuna completely surrenders himself to Lord Krishna and accepts his position as a disciple and Krishna as his Guru. He requests Krishna to guide him on how to dismiss his sorrow. 2. Explanation of the main cause of all grief, which is ignorance of the true nature of Self. 3. Karma Yoga - the discipline of selfless action without being attached to its fruits. 4. Description of a Perfect Man - One whose mind is steady and one-pointed.


2.सांख्ययोग, Verse 1

Verse text

सञ्जय उवाच तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्। विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।2.1।।

Continue reading Chapter 2, Verse 1

Top

2.सांख्ययोग, Verse 2

Verse text

श्री भगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्। अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।

Continue reading Chapter 2, Verse 2

Top

2.सांख्ययोग, Verse 3

Verse text

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते। क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।

Continue reading Chapter 2, Verse 3

Top

2.सांख्ययोग, Verse 4

Verse text

अर्जुन उवाच कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन। इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।।2.4।।

Continue reading Chapter 2, Verse 4

Top

2.सांख्ययोग, Verse 5

Verse text

गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्।।2.5।।

Continue reading Chapter 2, Verse 5

Top

2.सांख्ययोग, Verse 6

Verse text

न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः। यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।।2.6।।

Continue reading Chapter 2, Verse 6

Top

2.सांख्ययोग, Verse 7

Verse text

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः। यच्छ्रेयः स्यान्निश्िचतं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।

Continue reading Chapter 2, Verse 7

Top

2.सांख्ययोग, Verse 8

Verse text

न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्। अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धम् राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्।।2.8।।

Continue reading Chapter 2, Verse 8

Top

2.सांख्ययोग, Verse 9

Verse text

सञ्जय उवाच एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप। न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।।2.9।।

Continue reading Chapter 2, Verse 9

Top

2.सांख्ययोग, Verse 10

Verse text

तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत। सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः।।2.10।।

Continue reading Chapter 2, Verse 10

Top

2.सांख्ययोग, Verse 11

Verse text

श्री भगवानुवाच अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे। गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11।।

Continue reading Chapter 2, Verse 11

Top

2.सांख्ययोग, Verse 12

Verse text

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः। न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।2.12।।

Continue reading Chapter 2, Verse 12

Top

2.सांख्ययोग, Verse 13

Verse text

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।2.13।।

Continue reading Chapter 2, Verse 13

Top

2.सांख्ययोग, Verse 14

Verse text

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः। आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।2.14।।

Continue reading Chapter 2, Verse 14

Top

2.सांख्ययोग, Verse 15

Verse text

यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ। समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।।2.15।।

Continue reading Chapter 2, Verse 15

Top

2.सांख्ययोग, Verse 16

Verse text

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।2.16।।

Continue reading Chapter 2, Verse 16

Top

2.सांख्ययोग, Verse 17

Verse text

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्। विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित् कर्तुमर्हति।।2.17।।

Continue reading Chapter 2, Verse 17

Top

2.सांख्ययोग, Verse 18

Verse text

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः। अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।।2.18।।

Continue reading Chapter 2, Verse 18

Top

2.सांख्ययोग, Verse 19

Verse text

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।2.19।।

Continue reading Chapter 2, Verse 19

Top

2.सांख्ययोग, Verse 20

Verse text

न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।2.20।।

Continue reading Chapter 2, Verse 20

Top

2.सांख्ययोग, Verse 21

Verse text

वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्। कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।।2.21।।

Continue reading Chapter 2, Verse 21

Top

2.सांख्ययोग, Verse 22

Verse text

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।

Continue reading Chapter 2, Verse 22

Top

2.सांख्ययोग, Verse 23

Verse text

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।2.23।।

Continue reading Chapter 2, Verse 23

Top

2.सांख्ययोग, Verse 24

Verse text

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च। नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।।2.24।।

Continue reading Chapter 2, Verse 24

Top

2.सांख्ययोग, Verse 25

Verse text

अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते। तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।2.25।।

Continue reading Chapter 2, Verse 25

Top

2.सांख्ययोग, Verse 26

Verse text

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्। तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि।।2.26।।

Continue reading Chapter 2, Verse 26

Top

2.सांख्ययोग, Verse 27

Verse text

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।।

Continue reading Chapter 2, Verse 27

Top

2.सांख्ययोग, Verse 28

Verse text

अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत। अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।।2.28।।

Continue reading Chapter 2, Verse 28

Top

2.सांख्ययोग, Verse 29

Verse text

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः। आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।2.29।।

Continue reading Chapter 2, Verse 29

Top

2.सांख्ययोग, Verse 30

Verse text

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत। तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।

Continue reading Chapter 2, Verse 30

Top

2.सांख्ययोग, Verse 31

Verse text

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि। धर्म्याद्धि युद्धाछ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते।।2.31।।

Continue reading Chapter 2, Verse 31

Top

2.सांख्ययोग, Verse 32

Verse text

यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्। सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।2.32।।

Continue reading Chapter 2, Verse 32

Top

2.सांख्ययोग, Verse 33

Verse text

अथ चैत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि। ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि।।2.33।।

Continue reading Chapter 2, Verse 33

Top

2.सांख्ययोग, Verse 34

Verse text

अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्। संभावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।।2.34।।

Continue reading Chapter 2, Verse 34

Top

2.सांख्ययोग, Verse 35

Verse text

भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः। येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम्।।2.35।।

Continue reading Chapter 2, Verse 35

Top

2.सांख्ययोग, Verse 36

Verse text

अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः। निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्।।2.36।।

Continue reading Chapter 2, Verse 36

Top

2.सांख्ययोग, Verse 37

Verse text

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।2.37।।

Continue reading Chapter 2, Verse 37

Top

2.सांख्ययोग, Verse 38

Verse text

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।

Continue reading Chapter 2, Verse 38

Top

2.सांख्ययोग, Verse 39

Verse text

एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु। बुद्ध्यायुक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।।2.39।।

Continue reading Chapter 2, Verse 39

Top

2.सांख्ययोग, Verse 40

Verse text

नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते। स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।।2.40।।

Continue reading Chapter 2, Verse 40

Top

2.सांख्ययोग, Verse 41

Verse text

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन। बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।2.41।।

Continue reading Chapter 2, Verse 41

Top

2.सांख्ययोग, Verse 42

Verse text

यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः। वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः।।2.42।।

Continue reading Chapter 2, Verse 42

Top

2.सांख्ययोग, Verse 43

Verse text

कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्। क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति।।2.43।।

Continue reading Chapter 2, Verse 43

Top

2.सांख्ययोग, Verse 44

Verse text

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्। व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते।।2.44।।

Continue reading Chapter 2, Verse 44

Top

2.सांख्ययोग, Verse 45

Verse text

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन। निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।

Continue reading Chapter 2, Verse 45

Top

2.सांख्ययोग, Verse 46

Verse text

यावानर्थ उदपाने सर्वतः संप्लुतोदके। तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः।।2.46।।

Continue reading Chapter 2, Verse 46

Top

2.सांख्ययोग, Verse 47

Verse text

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।

Continue reading Chapter 2, Verse 47

Top

2.सांख्ययोग, Verse 48

Verse text

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।

Continue reading Chapter 2, Verse 48

Top

2.सांख्ययोग, Verse 49

Verse text

दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय। बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः।।2.49।।

Continue reading Chapter 2, Verse 49

Top

2.सांख्ययोग, Verse 50

Verse text

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।

Continue reading Chapter 2, Verse 50

Top

2.सांख्ययोग, Verse 51

Verse text

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः। जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।।

Continue reading Chapter 2, Verse 51

Top

2.सांख्ययोग, Verse 52

Verse text

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति। तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।2.52।।

Continue reading Chapter 2, Verse 52

Top

2.सांख्ययोग, Verse 53

Verse text

श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि।।2.53।।

Continue reading Chapter 2, Verse 53

Top

2.सांख्ययोग, Verse 54

Verse text

अर्जुन उवाच स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव। स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।2.54।।

Continue reading Chapter 2, Verse 54

Top

2.सांख्ययोग, Verse 55

Verse text

श्री भगवानुवाच प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्। आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।

Continue reading Chapter 2, Verse 55

Top

2.सांख्ययोग, Verse 56

Verse text

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः। वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।।2.56।।

Continue reading Chapter 2, Verse 56

Top

2.सांख्ययोग, Verse 57

Verse text

यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्। नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.57।।

Continue reading Chapter 2, Verse 57

Top

2.सांख्ययोग, Verse 58

Verse text

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.58।।

Continue reading Chapter 2, Verse 58

Top

2.सांख्ययोग, Verse 59

Verse text

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः। रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2.59।।

Continue reading Chapter 2, Verse 59

Top

2.सांख्ययोग, Verse 60

Verse text

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः। इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः।।2.60।।

Continue reading Chapter 2, Verse 60

Top

2.सांख्ययोग, Verse 61

Verse text

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः। वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.61।।

Continue reading Chapter 2, Verse 61

Top

2.सांख्ययोग, Verse 62

Verse text

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।।

Continue reading Chapter 2, Verse 62

Top

2.सांख्ययोग, Verse 63

Verse text

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।

Continue reading Chapter 2, Verse 63

Top

2.सांख्ययोग, Verse 64

Verse text

रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन्। आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति।।2.64।।

Continue reading Chapter 2, Verse 64

Top

2.सांख्ययोग, Verse 65

Verse text

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते। प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।2.65।।

Continue reading Chapter 2, Verse 65

Top

2.सांख्ययोग, Verse 66

Verse text

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना। न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्।।2.66।।

Continue reading Chapter 2, Verse 66

Top

2.सांख्ययोग, Verse 67

Verse text

इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते। तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि।।2.67।।

Continue reading Chapter 2, Verse 67

Top

2.सांख्ययोग, Verse 68

Verse text

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.68।।

Continue reading Chapter 2, Verse 68

Top

2.सांख्ययोग, Verse 69

Verse text

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।

Continue reading Chapter 2, Verse 69

Top

2.सांख्ययोग, Verse 70

Verse text

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्। तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।2.70।।

Continue reading Chapter 2, Verse 70

Top

2.सांख्ययोग, Verse 71

Verse text

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः। निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।

Continue reading Chapter 2, Verse 71

Top

2.सांख्ययोग, Verse 72

Verse text

एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति। स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति।।2.72।।

Continue reading Chapter 2, Verse 72

Top


General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office | || Travel: Places to visit | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels | || Literature: Philosophers | Books | || Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails | || History: Chinese history | Indian history | || Education: UK universities | US universities | ||