1. अर्जुनविषादयोग | 2. सांख्ययोग | 3. कर्मयोग | 4. ज्ञानकर्मसंन्यासयोग | 5. कर्मसंन्यासयोग | 6. ध्यानयोग | 7. ज्ञानविज्ञानयोग | 8. अक्षरब्रह्मयोग | 9. राजविद्याराजगुह्ययोग | 10. विभूतियोग | 11. विश्वरूपदर्शनयोग | 12. भक्तियोग | 13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग | 14. गुणत्रयविभागयोग | 15. पुरुषोत्तमयोग | 16. दैवासुरसम्पद्विभागयोग | 17. श्रद्धात्रयविभागयोग | 18. मोक्षसंन्यासयोग |

3. कर्मयोग (Karma Yoga)

Chapter 3, Verse 1 | Chapter 3, Verse 2 | Chapter 3, Verse 3 | Chapter 3, Verse 4 | Chapter 3, Verse 5 | Chapter 3, Verse 6 | Chapter 3, Verse 7 | Chapter 3, Verse 8 | Chapter 3, Verse 9 | Chapter 3, Verse 10 | Chapter 3, Verse 11 | Chapter 3, Verse 12 | Chapter 3, Verse 13 | Chapter 3, Verse 14 | Chapter 3, Verse 15 | Chapter 3, Verse 16 | Chapter 3, Verse 17 | Chapter 3, Verse 18 | Chapter 3, Verse 19 | Chapter 3, Verse 20 | Chapter 3, Verse 21 | Chapter 3, Verse 22 | Chapter 3, Verse 23 | Chapter 3, Verse 24 | Chapter 3, Verse 25 | Chapter 3, Verse 26 | Chapter 3, Verse 27 | Chapter 3, Verse 28 | Chapter 3, Verse 29 | Chapter 3, Verse 30 | Chapter 3, Verse 31 | Chapter 3, Verse 32 | Chapter 3, Verse 33 | Chapter 3, Verse 34 | Chapter 3, Verse 35 | Chapter 3, Verse 36 | Chapter 3, Verse 37 | Chapter 3, Verse 38 | Chapter 3, Verse 39 | Chapter 3, Verse 40 | Chapter 3, Verse 41 | Chapter 3, Verse 42 | Chapter 3, Verse 43 |

Chapter 3 - कर्मयोग

भगवद गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग या निःस्वार्थ सेवा का मार्ग है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण जीवन में कर्म के महत्व पर जोर देते हैं। वे बताते हैं कि इस भौतिक संसार में हर मनुष्य का किसी न किसी प्रकार की क्रिया में सम्मिलित होना अनिवार्य है। इसके अलावा, वह उन कार्यों के बारे में बताते हैं जो मनुष्य को बांधते हैं अथवा वे जो मनुष्य को मुक्ति दिलाते हैं। वे मनुष्य जो अपने कर्तव्यों को भगवन की ख़ुशी के लिए एवं बिना फल की अपेक्षा किये हुए निरंतर करते रहते हैं, वे अंत में मुक्ति प्राप्त करते हैं।

The third chapter of the Bhagavad Gita is "Karma Yoga" or the "Path of Selfless Service". Here Lord Krishna emphasizes the importance of karma in life. He reveals that it is important for every human being to engage in some sort of activity in this material world. Further, he describes the kinds of actions that lead to bondage and the kinds that lead to liberation. Those persons who continue to perform their respective duties externally for the pleasure of the Supreme, without attachment to its rewards get liberation at the end.


3.कर्मयोग, Verse 1

Verse text

अर्जुन उवाच ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन। तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव।।3.1।।

Continue reading Chapter 3, Verse 1

Top

3.कर्मयोग, Verse 2

Verse text

व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे। तदेकं वद निश्िचत्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्।।3.2।।

Continue reading Chapter 3, Verse 2

Top

3.कर्मयोग, Verse 3

Verse text

श्री भगवानुवाच लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ। ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्।।3.3।।

Continue reading Chapter 3, Verse 3

Top

3.कर्मयोग, Verse 4

Verse text

न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते। न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति।।3.4।।

Continue reading Chapter 3, Verse 4

Top

3.कर्मयोग, Verse 5

Verse text

न हि कश्िचत्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्। कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः।।3.5।।

Continue reading Chapter 3, Verse 5

Top

3.कर्मयोग, Verse 6

Verse text

कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्। इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।।3.6।।

Continue reading Chapter 3, Verse 6

Top

3.कर्मयोग, Verse 7

Verse text

यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन। कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते।।3.7।।

Continue reading Chapter 3, Verse 7

Top

3.कर्मयोग, Verse 8

Verse text

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।

Continue reading Chapter 3, Verse 8

Top

3.कर्मयोग, Verse 9

Verse text

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः। तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।3.9।।

Continue reading Chapter 3, Verse 9

Top

3.कर्मयोग, Verse 10

Verse text

सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः। अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्।।3.10।।

Continue reading Chapter 3, Verse 10

Top

3.कर्मयोग, Verse 11

Verse text

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः। परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।।3.11।।

Continue reading Chapter 3, Verse 11

Top

3.कर्मयोग, Verse 12

Verse text

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः। तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः।।3.12।।

Continue reading Chapter 3, Verse 12

Top

3.कर्मयोग, Verse 13

Verse text

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः। भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।

Continue reading Chapter 3, Verse 13

Top

3.कर्मयोग, Verse 14

Verse text

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।

Continue reading Chapter 3, Verse 14

Top

3.कर्मयोग, Verse 15

Verse text

कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्। तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।3.15।।

Continue reading Chapter 3, Verse 15

Top

3.कर्मयोग, Verse 16

Verse text

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः। अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।3.16।।

Continue reading Chapter 3, Verse 16

Top

3.कर्मयोग, Verse 17

Verse text

यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः। आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते।।3.17।।

Continue reading Chapter 3, Verse 17

Top

3.कर्मयोग, Verse 18

Verse text

नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन। न चास्य सर्वभूतेषु कश्िचदर्थव्यपाश्रयः।।3.18।।

Continue reading Chapter 3, Verse 18

Top

3.कर्मयोग, Verse 19

Verse text

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।3.19।।

Continue reading Chapter 3, Verse 19

Top

3.कर्मयोग, Verse 20

Verse text

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः। लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि।।3.20।।

Continue reading Chapter 3, Verse 20

Top

3.कर्मयोग, Verse 21

Verse text

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।3.21।।

Continue reading Chapter 3, Verse 21

Top

3.कर्मयोग, Verse 22

Verse text

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन। नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।।3.22।।

Continue reading Chapter 3, Verse 22

Top

3.कर्मयोग, Verse 23

Verse text

यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।3.23।।

Continue reading Chapter 3, Verse 23

Top

3.कर्मयोग, Verse 24

Verse text

उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्। सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः।।3.24।।

Continue reading Chapter 3, Verse 24

Top

3.कर्मयोग, Verse 25

Verse text

सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत। कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्िचकीर्षुर्लोकसंग्रहम्।।3.25।।

Continue reading Chapter 3, Verse 25

Top

3.कर्मयोग, Verse 26

Verse text

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्। जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान् युक्तः समाचरन्।।3.26।।

Continue reading Chapter 3, Verse 26

Top

3.कर्मयोग, Verse 27

Verse text

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः। अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताऽहमिति मन्यते।।3.27।।

Continue reading Chapter 3, Verse 27

Top

3.कर्मयोग, Verse 28

Verse text

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः। गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते।।3.28।।

Continue reading Chapter 3, Verse 28

Top

3.कर्मयोग, Verse 29

Verse text

प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु। तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्।।3.29।।

Continue reading Chapter 3, Verse 29

Top

3.कर्मयोग, Verse 30

Verse text

मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा। निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः।।3.30।।

Continue reading Chapter 3, Verse 30

Top

3.कर्मयोग, Verse 31

Verse text

ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः। श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः।।3.31।।

Continue reading Chapter 3, Verse 31

Top

3.कर्मयोग, Verse 32

Verse text

ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्। सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः।।3.32।।

Continue reading Chapter 3, Verse 32

Top

3.कर्मयोग, Verse 33

Verse text

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि। प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति।।3.33।।

Continue reading Chapter 3, Verse 33

Top

3.कर्मयोग, Verse 34

Verse text

इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ। तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ।।3.34।।

Continue reading Chapter 3, Verse 34

Top

3.कर्मयोग, Verse 35

Verse text

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।

Continue reading Chapter 3, Verse 35

Top

3.कर्मयोग, Verse 36

Verse text

अर्जुन उवाच अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।3.36।।

Continue reading Chapter 3, Verse 36

Top

3.कर्मयोग, Verse 37

Verse text

श्री भगवानुवाच काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः। महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।3.37।।

Continue reading Chapter 3, Verse 37

Top

3.कर्मयोग, Verse 38

Verse text

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथाऽऽदर्शो मलेन च। यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।।3.38।।

Continue reading Chapter 3, Verse 38

Top

3.कर्मयोग, Verse 39

Verse text

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा। कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च।।3.39।।

Continue reading Chapter 3, Verse 39

Top

3.कर्मयोग, Verse 40

Verse text

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते। एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्।।3.40।।

Continue reading Chapter 3, Verse 40

Top

3.कर्मयोग, Verse 41

Verse text

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ। पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।3.41।।

Continue reading Chapter 3, Verse 41

Top

3.कर्मयोग, Verse 42

Verse text

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः। मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।

Continue reading Chapter 3, Verse 42

Top

3.कर्मयोग, Verse 43

Verse text

एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना। जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।

Continue reading Chapter 3, Verse 43

Top


General: Home | Google trends | Bhagavada Gita | UK Box office |
Travel: Places to visit | Travel Itineraries | Beaches | Mountains | Waterfalls | Walking trails UK | Hotels |
Literature: Philosophers | Books |
Food: Italian Food | Indian Food | Spanish Food | Cocktails |
History: Chinese history | Indian history |
Education: UK universities | US universities |